शहडोल जिले में खनन का अजीब खेल है। सत्ता और विपक्ष दोनों ही चेहरे खनन का कारोबार कर रहे है। हालांकि अफसर भी इससे पीछे नहीं है। किसी ने अपने नाते रिस्तेदारों को आगें बढाया, तो किसी ने रेत व्यापारियों को इसमें ये धंधा भी खूब है। इसके लिए लोग दल भी बदल लेते है। यही वजह है कि जब भाजपा सरकार आई तो कई खनन कारोबारी भी भाजपा में आ गए। वह शहर में रेत लाने के पहले पुलिस चौकी, पुलिस थाना और खनिज विभाग को सूचित कर लेते है।
लाईन क्लीयर करो हम रेत लेकर शहर आ रहे है। कार्रवाई हुई तो टोकन और रसूख के नाम पर रेत से भरे वाहनों को छोड़ देते है। ये जलजला है यहां के रेत कारोबारियों का। वह विभाग की सह पर अवैध रूप से रेत भण्डारन किए हुए है। लेकिन वहां पर कार्रवाई करने के लिए अफसरों का मन नहीं होता है। प्रतिबंध और हत्या के बाद रेत खदानों पर कार्रवाई भी की गई। लेकिन मामला रफा-दफा होकर फिर से रेत का कार्य शुरू हो गया। रेत खदानों को सरकारी कागजों में बंद किया गया है। लेकिन वहां पर रेत का कारोबार आज भी जारी है। या की कई जगह अक्षांश व देशांतर जगह पर देखें तो रेट है ही नहीं और दूसरी जगह से उत्खनन किया जा रहा है
रेत खदानों से करोड़ों और अरबों का धंधा
खदानों के खेल के पीछे करोडों-अरबों का हेर फेर छिपा है। खदानों से अवैध रेत निकालना किसी सामान्य व्यक्ति के बस का काम नहीं है। यहां सब खनिज विभाग और पुलिस के बिना काम नहीं होता है। बडे खनिज से बात करे तो जिला स्तर पर विभिन्न मंजूरियों को लेना पड़ता है। जहां रसूख के साथ टोकन मनी अनिवार्य है।
रसूखों का असर
नेताओं और रसूख के कारण अधिकारी खदानों पर हाथ नहीं डालते है। अधिकतर खदानें नदी और गहरे वनक्षेत्रों या निर्जन इलाकों में स्थित है। जहां पर सामान्यता अधिकारी जाते ही नहीं है। इन जगहों पर निरीक्षण करने भी अधिकारी कम जाते है। उस पर यदि सत्ता का पक्ष का समर्थन हो तो खनिज अधिकारी सहित दूसरे अफसर भी परेशान नहीं करते। हर स्तर पर सत्ता की सांठगांठ का फायदा मालिक को मिलता हैं
ऐसे होता है खेल
सबसे पहले खनिज विभाग को साधना होता है। यही से मौखिक और कागजी सारी फायलें मंजूर होती है। विभाग के साथ पूरी सैटिंग करना पड़ती है। वरना एक बार आपत्तियां शुरू हुई तो फिर मामला उलझता जाता है। इसलिए शुरूआत में ही मामला साध लिया जाता है।
निगरानी तंत्र को धोखा
सरकार के पास निगरानी करने वाला व्यवस्थित तंत्र नहीं जों जांचें कि खनिज कितना निकाला। करोडों के बारे न्यारे हो रहे है। खनिज अधिकारी खुद जंगली इलाकों में निरीक्षण करने नहीं जाते और जो निरीक्षण करने जाते है। उनसे सांठगांठ कर ली जाती है।
रॉयल्टी दिखावे की
क्षेत्र में रेत का कारोबार फैलाकर माफिया खनिज को दूसरे राज्यों में बगैर रॉयल्टी के रेत को बेच देते है। अवैध खनन और परिवाहन जमकर होता है। कुछ रॉयल्टी जमा दिखा दी जाती है। बांकी खनिज गायब।
नियम बस कागज पर
खदान लेने के बाद सड़क बनाने,पेड लगाने जैसे नियम कागजों पर ही पूरे होते है। कई बार खदान लेकर दूसरे को बेच दी जाती है। जिससे बिना खनन किए ही करोडों कमा लिए जाते है।
लापरवाही या संरक्षण
सरकार हर वर्ष मानसून के दिनों में सक्रिय होती है। और 15 जून से खनन पर रोक लगा दी जाती है। लेकिन खननकर्ता भी एक कदम आगें है। वे पहले ही रेत के स्टॉक जमा कर लेते है। रेत खदानों से गरज रही मशीनों को देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता है। कि जिम्मेदार कितनी संवेदनशीलता से नियमों का पालन करा रहे है।
रसूख को पहले ही लग जाती है भनक
खननकर्ताओं कर रसूख इतना कि जब भी कार्रवाई के लिए टीम पहुंंचती है तो उन्हें पहले ही इसकी जानकारी लग जाती है। और सामान समेट मौके से निकल जाते है। दूसरा यदि वह दबिश में पकड़े भी जाते है तो लेन-देने के बाद मामला रफ-दफा हो जाता है।
अवैध रूप से चल रही रेत की मंडी
रेत का कारोबार चरम सीमा पर है। इन रेत व्यापारियों का जहां मन होता, वहां पर रेत की मंडी लगा लेते है
खनिज अधिकारी शहडोल
खनिज विभाग में शहडोल जिले में किसी प्रकार की अनियमित नहीं है
Shivendra Tiwari