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जिले के अफसर या कि देखते नहीं है या देखना नहीं चाहते ? एक पेड़ के बदले कहां लगाए गए हैं 10 पेड़ ?

शहर का मुख्य बाईपास बने हो गए 10 साल, लेकिन प्रशासन नहीं तैयार करवा पाया 10 पेड़
शहर के भीतर डिवाइडर में छायादार और फलदार लगाने थे पौधे, लेकिन पौधों का कहीं अता पता नहीं
अब एक बार फिर बनाई गई है करोड़ों कार्य योजना, आवंटन मिलते ही खुश हो जाएंगे अफसर

अनिल त्रिपाठी, रीवा

वन विभाग और पीडब्ल्यूडी के आला अधिकारी नए बजट आने की खबर सुनते ही काफी खुश हो जाते हैं। फिर वह यह चाहते हैं कि अधिक से अधिक बजट उनके कोटे में आ जाए ताकि वह उसका अपने हिसाब से उपयोग और दुरुपयोग कर सकें। मामला वृक्षारोपण से जुड़ा हुआ है। जिसमें हर साल कम से कम दो से पांच करोड रुपए तक खर्च हो रहे हैं लेकिन इतना पैसा खर्च होने के बावजूद बेचारे पेड़ लग ही नहीं पा रहे।
ग्रीन रीवा क्लीन रीवा बनाने के उद्देश्य से गत दिवस प्रदेश के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने एक बैठक आयोजित कर रीवा शहर को पूरी तरह से हरा भरा बनाने का निर्देश दे गए हैं। वन विभाग ने इसका एक चार्ट भी बनाया है जिसके अंतर्गत लगभग 15000 नए पौधों का रोपण किया जाएगा एवं उसके रखरखाव की व्यवस्था की जाएगी। इसमें से कुछ काम वन विभाग के हवाले दिया गया है तो कुछ काम लोक निर्माण विभाग को आवंटित होना है। कुछ हिस्सा नगर निगम के खाते में भी जाएगा। यानी कि पेड़ लगाए जाने हैं।
अमूमन तौर पर जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार वर्ष 2008 के बाद से हर साल शहर के भीतर वृक्षारोपण का अभियान चलाया जाता है। वृक्षारोपण भी होता है और महीने दो महीने तक वह पेड़ जाली सहित दिखाई देते हैं, इसके बाद पेड़ और जाली भी गायब हो जाती है जिसकी कोई खोज खबर लेने वाला तक नहीं रहता है। यहां उल्लेखनीय पहलू यह है कि चोरहटा से लेकर रत हरा तक पिछले 15 सालों में हर साल वृक्षारोपण कराया गया है। हर साल वृक्षारोपण होने के बावजूद रीवा नगर हरा-भरा नहीं हो पाया है। यानी कि अगर प्रतिवर्ष एक करोड़ का बजट भी कम से कम जोड़ा जाए तो यह रकम 15 करोड़ की होती है। इसके अलावा भी अन्य मदो का बजट भी इसी में जोड़ा जाता है।
नियम कायदे और अनुबंध केवल कागजों तक ही
यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004 में शुरू होने वाले चोरहटा रतहरा बाईपास का निर्माण कराया गया था। जिस ठेकेदार से सरकार ने अनुबंध किया था उसमें स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि ठेकेदार द्वारा जितने पेड़ कटवाए जाएंगे उसी प्रजाति के 10 पेड़ लगवाए जाना उसकी जिम्मेदारी होगी। इसी प्रकार रीवा से लेकर हनुमना तक फोरलेन सडक़ निर्माण करने वाले ठेकेदार को भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कहीं भी पेड़ नहीं लगाए गए। डिवाइडर में कहीं कहीं कनैल के पेड़ दिखाई दे जाते हैं बाकी आम आदमी की छाया के लिए और फलदार पेड़ तो कहीं दिखाई ही नहीं देते।
…तो सडक़ पर क्या पट्टी बांध के चलते हैं अफसर और जनप्रतिनिधि ?
सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी छानबीन के लिए बकायदा अफसर तैनात हैं लेकिन या कि वह देखते नहीं है यह आंखों पर पट्टी बांधकर चलते हैं। इसीलिए आज तक उनको यह मनमानी दिखाई नहीं दी। यही स्थिति जनप्रतिनिधियों की है उन्हें भी नहीं दिखाई देता, या फिर उन्हें नियम कायदे ही नहीं पता है। जबकि सच्चाई यह है की डीपीआर में इन सब गतिविधियों के लिए भी अतिरिक्त टफ फंड जोड़ा जाता है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि सरकारी राशि का खुला दुरुपयोग का हर साल वृक्षारोपण के नाम पर हो रहा है। कोई देखने सुनने वाला नहीं है। अगर कोई देखने सुनने वाला होता तो निश्चित तौर पर कार्यवाही भी होती।

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