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26 साल बाद आया जनपद जवा के शिक्षाकर्मी घोटाला का फैसाला, रमाशंकर मिश्रा समेत 14 आरोपियों को सजा

अपात्रों को बना दिया शिक्षक, पात्र रह गये इंतजार में
170 शिक्षक भी फंस गये झमेले में, उनका भविष्य अब तय करेगा न्यायालय
फैसला आने से पहले ही ४ आरोपी हो गये भगवान को प्यारे

नगर प्रतिनिधि, रीवा

जिले के बहुचर्चित शिक्षाकर्मी भर्ती घोटाला मामले में शुक्रवार को प्रथम अपर सत्र न्यायालय लोकायुक्त द्वारा 14 व्यक्तियों को दोषी पाया है, जबकि एक व्यक्ति बरी कर दिया गया है। दोषी पाए गए व्यक्तियों को दो एवं तीन साल की सजा एवं जुर्माना से दण्डित किया गया है। यह मामला 1998 का जवा जनपद पंचायत से जुड़ा है। बाद में आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
इस प्रकरण की पैरवी शासकीय सहायक लोक अभियोजक आलोक श्रीवास्तव ने की। एडीपीओ आला श्रीवास्तव ने बताया कि राजीव गांधी शिक्षा मिशन और स्कूल शिक्षा विभाग में जवा जनपद पंचायत अन्तर्गत 170 पद निकाले गए थे। जिसमें निर्धारित चयन प्रक्रिया एवं राज्य शासन के मापदण्डों का उल्लंघन करते हुए अपात्र लोगों की नियुक्ति जनपद पंचायत की चयन समिति द्वारा कर दी गई थी। उस दौरान चयन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन जनपद सीईओ बाबूलाल तिवारी थे, जिनका बाद में निधन हो गया।
लोकायुक्त ने छापा मारकर जब्त किए थे दस्तावेज
भर्ती घोटाले में अनियमितता को लेकर के लोकायुक्त में शिकायत हुई थी जिसके बाद छापामार कार्रवाई कर बड़े पैमाने पर जनपद कर पंचायत जवा से दस्तावेज जब्त किए थे। बई लोकायुक्त ने 22 सितम्बर 1998 को प्रकरण दर्ज किया था। इस मामले में 45 साक्षियों और 240 दस्तावेज विशेष न्यायालय में पेश किए गए थे।
लोकायुक्त ने भादंवि की धारा 120बी, नए 467, 468, 471 के तहत सीईओ समेत 19 व्यक्तियों के विरुद्ध प्रकरण दर्ज किया था हम जिनमें जवा विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, विशेषज्ञ निरीक्षक एवं जनपद पंचायत के तार पदाधिकारी, चयन समिति के सदस्य एवं इव विधायक प्रतिनिधि शामिल हैं। इनमें चार द्वारा आरोपियों की विचारण के दौरान मृत्यु हो गई। जिनमें सीईओ बाबूलाल तिवारी, नन्दगोपाल तिवारी, सुखलाल और रामशरण शुक्ला हैं। शुक्रवार को कुल 15 व्यक्तियों को कोर्ट में पेश किया गया था जिनमें से रामानंद पांडेय दोषमुक्त किए गए हैं।
क्या था बहुचर्चित शिक्षाकर्मी भर्ती घोटाला?
साल 1998 में रीवा की जवा जनपद पंचायत में वर्ग 1, 2 और 3 के लिए 170 पदों पर शिक्षकों की भर्तियां होनी थी, जिसमें राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत 60 जबकि शिक्षा विभाग के 110 शिक्षकों की भर्ती होनी थी. रिक्त पदों को भरने का आदेश पारित हुआ था. नियमानुसार 170 पदों पर रिक्तियों को भरने के लिए चयन समिति का गठन किया गया था. लेकिन चयन समिति के सदस्यों ने नियमों में हेरफेर और धांधली करते हुए रिक्तियों से अधिक नियुक्तियां कर दी थीं।
चयन समिति ने की थी धांधली
शिक्षाकर्मी भर्ती में घोटाले की भनक लगते ही मामले की शिकायत लोकायुक्त में की गई. लोकायुक्त ने जांच शुरू की तो घोटाले की बात परत दर परत सामने आने लगी. घोटाले के आरोप में 19 लोगों पर स्नढ्ढक्र दर्ज हुई और उनके विरुद्ध जिला न्यायालय रीवा में मुकदमा चलाया गया. ढीले न्यायप्रणाली के रवैये के चलते मुकदमे के 26 साल जिला सत्र न्यायालय के अपर न्यायाधीश डॉ. मुकेश का ये अहम फैसला आया है.
इनको हुई सजा
प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश मुकेश मलिक की अदालत ने जिन आरोपियों को सजा सुनाई उनमें सुब्बनलाल श्रीवास्तव तत्कालीन बीईओ, शम्भूनाथ शुक्ला शिक्षाविद, बलराम तिवारी, आशा मिश्रा, शिक्षा समिति के अध्यक्ष रमाशंकर मिश्रा, महेन्द्र प्रताप सिंह, रामनरेश तिवारी, रामसिया वर्मा, गुलाम अहमद, कामता प्रसाद, नीता देवी, विनोद के अलावा तत्कालीन सिरमौर विधायक रामलखन शर्मा के प्रतिनिधि संजीव शर्मा और तत्कालीन त्योंथर विधायक रामलखन पटेल के प्रतिनिधि शिवपाल शामिल हैं। इनमें से अलग-अलग धाराओं न्यूनतम दो वर्ष और 3000 हजार जुर्माना अधिकतम 3 वर्ष और 5 हजार जुर्माना दण्डित किया गया है। बाद में आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
शिक्षकों का भविष्य अधर में
जिन शिक्षकों की नियुक्ति को अवैधानिक तथा नियम विरूद्व बताया गया है ऐसे शिक्षकों का अब तक न ही संविलियन हो पाया है और न ही अब तक किसी एक्रीमेन्ट का लाभ मिला है। विगत २६ वर्षों से न्यायालय के निर्णय के इंतजार में बैठे थे लेकिन न्यायालय का फैसला उनके हित के विपरीत में आने से शिक्षकों में एकबार फिर मायूसी छा गई है।
आरोपी जा सकते हैं उच्च न्यायालय
जिला न्यायालय से हुए फैसले के विरूद्ध आरोपी उच्च न्यायालय का दरवाजा खट-खटा सकते हैं। यह माना जा रहा है कि २६ वर्षों के बाद जिला न्यायालय ने फैसला सुनाया है और फैसला आने से पहले ही प्रकरण में दोषी पाये गये ४ आरोपियों की मौत हो चुकी है। अगर उच्च न्यायालय से भी फैसला आने में देरी होती है तो १४ आरोपियों में जो आरोपी उम्र दराज के हैं तो ऐसा लोगों का सोचना है कि उच्च न्यायालय का फैसला आने से पहले ही इस दुनिया से जा सकते हैं। इतना ही नहीं अगर उच्च न्यायालय से आरोपियों को राहत भी मिल जाती है तो नियम विरूद्व तरीके नियुक्ती से जुड़े सैकड़ो शिक्षाकर्मी सेवा निवृत्त हो जायेंगे।

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