गरीबों के लिए बकरी पालना भी मुश्किल हो गया : अजय खरे
विंध्यभारत, रीवा
करीब 25 बकरियों का झुंड लेकर चल रहे सुग्रीम प्रजापति पंचवती प्रजापति अपने घर से करीब दो-तीन किलोमीटर दूर वार्ड नंबर 13 नेहरू नगर में देखे गए । समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने आज भीषण गर्मी झेल रहे बकरी पालकों और बकरियों का हाल-चाल लिया। वे लोग शहर के वोदाबाग वार्ड नंबर 9 रविदास नगर में रहते हैं।
बकरी पालन उनका जीवकोपार्जन है। सरकार द्वारा गरीबों को दी जा रही मदद ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है। बकरियों का दूध बेचकर थोड़ी बहुत सहारा मिल जाता है। बचपन से ही बकरियों को घूमाते फिराते और चराते हैं। भीषण गर्मी में भी इन्हें लेकर इधर-उधर भटकना पड़ता है। भू माफिया राज में चरनोई भूमि देखने को नहीं मिलती है।
कहीं खुले मैदान में झाड़ झंगाड़ मिलते है वहां बकरियों को कुछ पत्ते पत्तियां वगैरह खाने को मिल जाती है। ऐसी खुली जगह काफी कम रह गई हैं। बकरियों को पत्तियां खिलाने के लिए काफी गंदी जगह में भी जाना पड़ता है। शहरी क्षेत्र में बकरियों के लिए आहार ढूंढना बहुत मुश्किल है। यह लोग अपने साथ लंबा बांस और टांगी लेकर चलते हैं। ऊंचे पेड़ों की पत्तियों इसी से मिल पातीं हैं। ऐसे पेड़ काफी मददगार साबित होते हैं। बकरियों के झुंड को लेकर चलना और उनकी तकवाली करना बहुत मुश्किल होता है। किसी का नुकसान हो जाए तो काफी बातें सुननी पड़ती है। बकरियों की चोरी का भी डर बना रहता है। सडक़ दुर्घटना का भी खतरा रहता है। बकरियों को रास्ते पर लेकर चलने से लोगों की फटकार भी मिलती है। बकरियों के झुंड को रात के समय सुरक्षित रखना काफी कठिन काम है। बकरियों का बाड़ा बनाने के लिए काफी जगह चाहिए। इन लोगों की किसी तरह गुजर बसर चल रही है। श्री खरे ने बताया कि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करनेवाले ऐसे परिवारों की स्थिति काफी कष्टकारक है। बकरी पालन के लिए इन्हें कभी कोई ठोस मदद नहीं मिलती है। बकरियों को लेकर कब सरकारी नोटिस मिल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। प्रकृति के साथ इतना अधिक खिलवाड़ हुआ है कि पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा है। प्रकृति की गोद में बसे लोगो पर विषय ध्यान दिया जाना चाहिए।